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म॒हीर॑स्य॒ प्रणी॑तयः पू॒र्वीरु॒त प्रश॑स्तयः। नास्य॑ क्षीयन्त ऊ॒तयः॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahīr asya praṇītayaḥ pūrvīr uta praśastayaḥ | nāsya kṣīyanta ūtayaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हीः। अ॒स्य॒। प्रऽनी॑तयः। पू॒र्वीः। उ॒त। प्रऽश॑स्तयः। न। अ॒स्य॒। क्षी॒य॒न्ते॒। ऊ॒तयः॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (अस्य) इस राजा की (महीः) बड़ी (उत) और (पूर्वीः) प्राचीन वेदों में कही हुई (प्रणीतयः) उत्तम नीति और (ऊतयः) रक्षण आदि क्रियायें हैं (अस्य) इसकी (प्रशस्तयः) श्रेष्ठ कीर्तियाँ (न) नहीं (क्षीयन्ते) क्षीण होती हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो राजाजन नित्य बड़ी राजधर्म्मनीति को धारण करके पुत्र के सदृश प्रजाओं का पालन करते हैं, उनका नाशरहित यश होता है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! अस्य राज्ञो महीरुत पूर्वीः प्रणीतय ऊतयः सन्त्यस्य प्रशस्तयो न क्षीयन्ते ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महीः) महत्यः (अस्य) राज्ञः (प्रणीतयः) प्रकृष्टा नीतयः (पूर्वीः) प्राचीना वेदोदिताः (उत) (प्रशस्तयः) सत्कीर्त्तयः (न) निषेधे (अस्य) (क्षीयन्ते) (ऊतयः) रक्षणाद्याः क्रियाः ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये राजानो नित्यं महतीं राजधर्मनीतिं धृत्वा पुत्रवत् प्रजाः पालयन्ति तेषामक्षया कीर्तिर्जायते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजे नित्य महान राजधर्मनीतीनुसार पुत्राप्रमाणे प्रजेचे पालन करतात त्यांना अखंड कीर्ती प्राप्त होते. ॥ ३ ॥